
जब उत्तर प्रदेश के तमाम जिले बारिश से तर-बतर हैं, तब एक जिला ऐसा भी है जहां बादल आते हैं, घुमते हैं और फिर बिना कुछ बरसाए चले जाते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं – मथुरा की। जहां धार्मिक भावनाओं की बाढ़ है, लेकिन पानी की नहीं।
मथुरा: धार्मिक नगरी, लेकिन बारिश से दूरी
मथुरा, भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि, दिल्ली से 145 किमी और आगरा से 58 किमी दूर यमुना किनारे बसा एक ऐतिहासिक शहर है। हर साल करोड़ों भक्त यहां दर्शन को आते हैं – लेकिन मानसून देवता खुद दर्शन देने से कतराते हैं।
थार रेगिस्तान बना मथुरा का ‘Rain Blocker’
राजस्थान के पास स्थित थार का रेगिस्तान मानसूनी हवाओं के लिए वही है, जो ऑफिस के बाहर गार्ड – “अंदर जाने से पहले सोचना पड़ेगा!”
जब पश्चिम से मानसूनी हवाएं आती हैं, तो थार नमी को सोख लेता है। नतीजा? मथुरा में बादल छंट जाते हैं और बारिश का सीन कैंसल हो जाता है।
पेड़ों की कटाई ने बढ़ाई ‘सूखा स्थिति’
एक ज़माने में ब्रज क्षेत्र हरा-भरा था, लेकिन शहरीकरण और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने माहौल बदल दिया। पेड़ सिर्फ झूले के लिए नहीं होते – वो वातावरण में नमी बनाए रखते हैं। अब पेड़ कम, नमी कम – और बादल भी बोले: “अबे मैं क्यों बरसू यहां?”

मौसम कैलेंडर: मथुरा में मानसून का वीकेंड वाइब
मथुरा में साल का ज्यादातर हिस्सा शुष्क रहता है – जनवरी से मई = सूखा
जुलाई से सितंबर = Limited मानसून
अक्टूबर से दिसंबर = फिर सूखा
यहां की औसत वर्षा मात्र 620–793 मिमी है, जो यूपी के बाकी जिलों के मुकाबले काफी कम है।
यानी यहां बारिश भी ‘वेटिंग लिस्ट’ में है।
“कृष्ण जी, बारिश तो भिजवा दो!” – लोकल निवासियों की गुहार
स्थानीय लोग कहते हैं – “बादल रोज़ आते हैं, लेकिन बरसते नहीं।
हम तो हर साल सोचते हैं, इस बार मथुरा पर कृपा होगी – लेकिन बादल भी VIP डार्क सनग्लास पहन के चले जाते हैं!”
जहां आसमान भी दर्शन देकर निकल जाता है
मथुरा अब सिर्फ धार्मिक रूप से ही नहीं, मौसम के मामले में भी एक अनोखी पहचान रखता है।
जहां बाकी जिलों में जलभराव और बाढ़ की बातें हो रही हैं, वहीं मथुरा में लोग अब भी आसमान की ओर देख रहे हैं – “कृपा हो प्रभु, कम से कम एक झड़ी ही भेज दो!”